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रचना : ये जनता भोली-भाली है

2 years ago 1 min read


सत्ता को क्या सबक सिखाएं जनता भोली भाली हे 

आपस में ही लड़ती रहती एक पेड़ की डाली है

जब तक  लड़ती रहेगी जनता नेता मोज मनाएंगे

मृगतृष्णा सा झांसा देकर ठगकर वोट कमाएंगे

सत्ता का दुरुपयोग चरम पर भारत माता रोती है

न्याय व्यवस्था दफ्तर दफ्तर कुंभकरण सी सोती है

सत्ता तो बदली जाएगी याद करेगा कौन तुम्हे 

पर जनता के  उन प्रश्नों पर होना होगा मौन तुम्हे

न्याय तंत्र के खंभों को कमजोर कर दिया  है जिसने

सुरज  सा रोशन भारत  घनघोर कर दिया है जिसने

उसे मिले क्यों बैल जेल से , उसे मिले क्यों आज़ादी

सत्ता का शासन उसको ? जो करे वतन की बर्बादी

बर्बादी का दौर मिटाने अब हमको जगना होगा 

रचना : समय, शिव चारण

सही गलत का फर्क दिखाने ,हम सबको लगना होगा 

झूठे कामों का पैसा रख  काम गिनाया जाता है

वोट जीतकर जनता को हर रोज हराया जाता है

अजब गजब का खेल खेलते सत्ता को हथियाने को 

जहरीले अपने बन जाते वोटों  में जितवाने को 

जात पात की बात बताकर दंगों को भड़काते हैं 

अमन चैन कहने वाले गुंडों के दर खड़काते हैं

दाव खेलते राजनीति के शुकुनी भी शरमा जाए 

मृगतृष्णा सा मोह दिखाते जनता भी भरमा जाए

आज़ादी के दीवानों ने क्या सपने देखे होंगे 

हंसते खिलते पढ़ते लिखते भी अपने देखें होंगे

तेरी एक किरण, जीवन में जीत की आशा जगाती क्यों है

गांव गांव गलियां झूमेगी , जनता में  खुशहाली हो

हिंसा दंगे कभी न होंगे ,चंहुओर हरियाली हो

तानाशाही नहीं चलेगी , जनता का  शासन होगा

न्याय तुरंत मिलेगा सबको ना कोई अनशन होगा 

पर उनके सपनों को जख्मी राजनीति ये करती है ,

स्वर्ग लोक में भी वीरों के मन को आहत करती है 

गांव गली ना झूम रही है ना खुश हाली आई है 

ना नारी रक्षित भारत में ना हरियाली छाई है

ताना साही घोर चरम पे जनता  कुचली जाती  है

हड़ताले आवाजें अनशन लाठी से दब जाती है 

अपराधी बेखौफ घूमते पीड़ित घर में छुपते हैं 

राजनीति के चककर में हिंसा,देंगे न रुकते हैं

कब तक ये कुशासन होगा , शोषण अत्याचारों का

कब तक हम से राज छुपेगा , भ्रष्टों के प्रचारों का 

आए दिन अखबारों में जूठी खबरे छपवाई है

जनता के घावों की कोई दवा अभी ना आई है 


    गजेन्द्र चारण

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