कब तक झेलेंगे तपिश आग की
कब तक तरसेंगे मेघ, पवन को
कब तक कोसें इस दुनिया को
कब तक कोसें अंतर्मन को
अच्छा है राह बदल लें अब
कुछ सबक जानकर चल लें अब
छोड़े मृग तृष्णा मोह तभी
उलझन के थार का पार मिले
बस उत्प्रेरित होकर चल लें
ताकि मेहनत को धार मिले
कंटक चुभते दुखते पग में
पर जिनके साहस हो रग में
ना विचलित होते क्षण भर भी
राही बन कदम बढ़ाते जाते
लड़ते ,गिरते चुभते दुखते
संघर्ष गीत को गाते जाते
रुके नहीं , सब सहकर चल लें
ताकी मंजिल का द्वार मिले
बस उत्प्रेरित होकर चल लें
ताकि मेहनत को धार मिले
गिरता है मनोबल झरनों सा
मेहनत पर जब पानी फिरता
पर स्तंभित रहने से बढ़कर
अधिक सुखद है फिर चलना
ताकी जर्जर से महलों को
फीर से नव पुनरुद्धार मिले
बस उत्प्रेरित होकर चल लें
ताकी मेहनत को धार मिले
हो पथ में शूल या दिशा शूल
हर बाधा अंगीकार करें
रुकें नहीं चलते पथ पर
निज सपनों को साकार करें
घोर तिमिर में उजियारे की
आशा लेकर चलना होगा
ताकी नीरस से जीवन में
रस रसा स्वरूप संसार मिले
बस उत्प्रेरित होकर चल लें
ताकी मेहनत को धार मिले
चाहे मंजर भयभीत बने
साहस की भय पर जीत बने
हो क्षण प्रति क्षण दुविधा नवीन
हो दशा बनी अति क्लिष्ट दीन
साहस संकल्प विश्वास धैर्य
अपनाकर ही हो पथ गमन
ताकी ऊर्जा से रहित देह में
ऊर्जा का नव संचार मिले
बस उत्प्रेरित होकर चल लें
ताकी मेहनत को धार मिले
गजेन्द्र चारण