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चरित्र निर्माण

चरित्र ; किसी व्यक्ति के विश्वास , मूल्य , सोच-विचार और व्यक्तित्व का मेल होता है , इसका पता हमारे कार्य और व्यवहार से चलता है ।
चरित्र की रक्षा किसी अन्य धन की रक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण है ।
जीवन में सच्ची सफलता पाने के लिए व्यक्ति का चरित्रवान होना जरूरी है , सच्ची सफलता से आशय एक ऐसे उद्देश्य की प्राप्ति से है , जो हमारे साथ-साथ समाज के लिए भी कल्याणकारी हो , जो शाश्वत हो और जिसकी  प्राप्ति हमें हर प्रकार से संतुष्टि दे सके और जिसे पाने के बाद किसी अन्य चीज को पाने की ईच्छा न रहे , ऐसे लक्ष्य की प्राप्ति ही सच्ची सफलता कहलाती है ।
चूँकि सफलता पाने का मार्ग पड़ाव-दर-पड़ाव पार किया जाता है , जिसमें कई छोटे-बड़े लक्ष्य सम्मिलित होते हैं ।
फिर भी सफलता और सुख इन दोनों की परिभाषा प्रत्येक इंसान के लिए अलग-अलग होती है । कोई बहुत सारे पैसे कमाने को सफलता मानता है तो कोई किसी विशेष पद पर पहुँचने और प्रसिद्धि पाने को सफलता समझता है , अतः संक्षेप में कह सकते हैं कि किसी निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति करना ही सफलता कहलाती है ।
▶ वास्तव में सफलता है क्या ? पढ़ें ये पोस्ट : WHAT IS SUCCESS ?
दोस्तों ! चरित्र के बिना व्यक्ति का जीवन वैसा ही है जैसे बिना रीढ़ की हड्डी के शरीर होता है किन्तु आज के समय में तो लोग चरित्र से ज्यादा महत्व धन-दौलत को देते हैं , जिसके पास खूब पैसा,नाम व बड़ा घर-व्यापार है वह सामाजिक जीवन में सफल माना जाता है भले ही उसका चरित्र कैसा भी हो ।
फिर भी , किसी भी समय में चरित्र की महत्ता  कम नहीं आँकी जा सकती क्योंकि चरित्रवान व्यक्ति की प्रशंसा हर कोई करता है ।
》 चरित्र , निर्मित कैसे होता है 》
चरित्र अथवा स्वभाव , अच्छा और बुरा दोनो प्रकार का होता है । सामान्य तौर पर , हम चरित्र या स्वभाव से आशय सद्चरित्र या अच्छे स्वभाव का लेते हैं तथा अच्छे चरित्र कई में कई सदगुण विद्यमान होते है जैसे - धैर्य , साहस , ईमानदारी , सत्य , क्षमा , दया और सहानभूति आदि ।
वास्तव में , हम चरित्र-निर्माण से अधिक ध्यान अपने भविष्य-निर्माण पर देते है क्योंकि माता-पिता भी अपने बच्चों को यही समझाते हैं कि भविष्य बनाना , बहुत ज्ञान का अर्जन करना तथा धनवान बनना है लेकिन सद्चरित्र के अभाव में भौतिक धन होकर भी व्यक्ति निर्धन है तथा उसका ज्ञान भी अनुपयोगी है ।
इसीलिए , हमें चरित्र-निर्माण पर ध्यान देना होगा , बजाय भविष्य निर्माण के । यदि बच्चे चरित्रवान हों तो उनका भविष्य स्वयमेव सुनहला हो जाएगा ।
माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को सदैव सही मार्ग पर प्रशस्त करें , वे न सिर्फ अच्छे संस्कार और सद्चरित्र के लिए मार्गदर्शन दें बल्कि अपने कर्मों में भी यह भावना दिखाएँ ।
प्रारंभिक तौर पर , मनुष्य अपनी चारित्रिक विशेषताएँ माता-पिता और घर-परिवार के माहौल से ही सीखता है , बचपन में यदि कोई विशेष घटना हुई हो तो उसका प्रभाव भी चरित्र के निर्माण पर पड़ता है । कभी-कभी माता-पिता और बच्चों के कई गुण समान भी सकते हैं लेकिन कभी-कभार इसके उलट भी ।
            फिर भी , हर व्यक्ति अपने आप में बिल्कुल अलग है , सभी का स्वभाव अलग-अलग होता है क्योंकि चरित्र बनता है - विचारों से और प्रत्येक व्यक्ति के विचार अलग-अलग होते हैं ।
विचार ही चरित्र का निर्माण करते हैं इसलिए चरित्र को बदलने के लिए विचारों को बदलना जरूरी है । अच्छे चरित्र के लिए हमें उत्तम विचारों की जरूरत होती है ।
▶ विचार कैसे चरित्र और चरित्र कैसे भविष्य का निर्माण करते हैं , इस पोस्ट में पढ़ें :
ध्यान दें !
» चरित्र और व्यक्तित्व : -
हमारे जीवन में परिस्थितियाँ चाहे जो भी रही हों , हमारा चरित्र सदैव अच्छा होना चाहिए ।
जैसा कि Abraham Lincoln ने कहा है : -
" Character एक वृक्ष की तरह है और Personality उसकी परछाई की तरह । हम जिसके बारे में सोचते हैं वह परछाई है ; लेकिन वास्तविक चीज तो वृक्ष है । "
किसी का चरित्र जन्म से ही बना-बनाया नहीं माना जा सकता , हो सकता है कि उसकी कुछ प्रवृत्तियाँ पहले से निर्धारित हों तो भी चरित्र परिवर्तनीय है । हम अपनी प्रवृत्तियों को , विचारों को एवं मान्यताओं को बदल सकते हैं , समय के साथ , परिस्थितियों के साथ और किसी के मार्गदर्शन के साथ ।
चरित्र और व्यक्तित्व एक दूसरे से जुड़ी हुई चीजें हैं । चरित्र वह है जो होता है और व्यक्तित्व वह है जो दिखता है और दिखाई जाने वाली चीज का रूप बदला भी जा सकता है । कहने का अर्थ यही है कि किसी के व्यक्तित्व को देखकर आप उसका चरित्र नहीं जान सकते क्योंकि आप व्यक्तित्व देख रहे हैं , जो निश्चित तौर पर चरित्र को छुपा सकता है ।
निष्कर्ष : - चरित्र या स्वभाव हमारे जीवन और कर्मों का मूल है , हम जो भी करते हैं अपने स्वभाव से प्रेरित होकर करते हैं ।
अतः केवल चीजों को पाने की ओर ध्यान देने की बजाय हमें अपने चरित्र को बनाने और अपने आप को पहचानने पर ध्यान देने की जरूरत है ।
सद्चरित्र बनने से तात्पर्य , अंततः एक अच्छा इंसान होने से है और अच्छा इंसान होने से तात्पर्य ___!
अच्छा चरित्र और अच्छा व्यक्ति कैसा होना चाहिए ? अच्छे इंसान की परिभाषा क्या है ?
शायद इस प्रश्न का उत्तर मुझसे ज्यादा अच्छे से कोई और जानता है और वह है -
हम सभी के अंतःस्थल में स्थित हमारी अंतरात्मा ; जो हर समय हमारा मार्गदर्शन करती है , जिसकी आवाज हम अधिकतर अनसुनी करते हैं । पाठकों , इस विषय पर विस्तारपूर्वक बात अगली पोस्ट पर होगी ।




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