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संपादकीय

जीवन का अर्थ और उद्देश्य


इस संसार में अनेक प्रकार के लोग हैं जो अपनी जिंदगी अपनी सोच के आधार पर जी रहे हैं ! हर कोई जिंदगी के दौड़ में शामिल है ! एक दुसरे को पछाड़ना ही जिंदगी का मक़सद बन गया है ! आज किसी के पास वक़्त नहीं है ! अपनों के लिए भी नहीं ! सब जिंदगी जी रहे हैं , लेकिन कहीं सुकून नहीं  कहीं शान्ति नहीं !  (प्रकृति) के बारे में जानने की बात तो दूर , आज कल तो प्रकृति भी शक के दायरे में है ! परमात्मा एक से कई बन गए हैं ! अब तो इस बात पर लड़ाई होती है कौनसा परमात्मा श्रेष्ठ है?




क्या यही है जीवन ? जन्म से मृत्यु तक हमें सिर्फ संघर्ष करना चाहिए ? क्या है जीवन का अर्थ और उद्देश्य ?



शांत और सुकूनभरी जिंदगी के लिए हमें क्या करना चाहिए ? कुछ पंक्तियाँ



इस तरह न कमाओ कि पाप हो जाये

इस तरह न खर्च करो कि क़र्ज़ हो जाये

इस तरह न खाओ कि मर्ज़ हो जाये

इस तरह न बोलो कि क्लेश हो जाये

इस तरह न चलो के देर हो जाये

इस तरह न सोचो कि चिंता हो जाये



लेकिन आजकल  मनुष्य  इसका  विपरीत  करता  है ! कभी कभी में सोचता हूँ  पागल कौन है ?



मनुस्य कि जिंदगी एक अहम् वरदान है ! यह एक अमूल्य अवसर है प्रकृति के बारे में जानने का ! यह अवसर को गवाना सब से भारी नुक्सान है !



मनुष्य के जीवन का अर्थपूर्ण होगा अगर वह किसी दुसरे के काम आया ! मनुष्य जीवन का उद्देश्य प्रकृति  के बारे में जानना है , अर्थात मोक्ष !



प्रकृति के बारे में जानने के लिए  मनुष्य के मन में सब से पहले बलवती इच्छा होनी चाहिए ! वह इच्छा तब तक नहीं आयेगी जब तक मनुष्य का ह्रदय पवित्र नहीं होगा ! दूसरों कि सेवा से ह्रदय पवित्र होता है ! अपने लिए तो हर कोई जीता है लेकिन जो दूसरों के लिए भी जीता है उसको हमेशा याद किया जाता है !



खाने के लिए दो वक़्त कि रोटी  तन के लिए जरूरी कपडे और रहने के लिए एक मकान  मनुष्य का न्यूनतम आवश्यकता है ! जिनको यह नसीब नहीं वह मदद के तलबगार हैं , और जिनके पास इससे ज्यादा है उन्हें मदद करना चाहिए !



 "दो और ज्यादा दो, तुम्हारी तिजोरी कभी भी खाली नहीं होगी ".!



दान एक ह्रदय को पवित्र करनेवाला क्रिया है ! जो दिया वो जीया !



इंसान को नमक कि तरह होना चाहिए, जो खाने में रहता है तो दिखाई नहीं देता  और अगर न हो तो उसकी कमी महसूस होता !



मनुष्य के जिंदगी का अर्थ तब पूरा होगा जब वह किसी और के काम आया !

मनुष्य के जिंदगीं का उद्देस्य परमात्मा को जानना है ! इस मक़सद के लिए इंसान को कोशिश करनी चाहिए !



इसमें अनेक बाधाएं आएंगी ! लेकिन लगातार कोशिश ही सफलता लाती है ! धीरे धीरे बहती हुई एक धारा पत्थर में छेद कर देती है !  निरंतर प्रयास होना चाहिए ! किसी मक़सद के लिए खड़े हो तो पेड़ कि तरह खड़े रहो !  और गिरना है तो गिरो बीज कि तरह ताकि दोबारा उग सको उस मक़सद को पूरा करने के लिए ! गिरने से हार नहीं होती , हार तब होती है जब और कोशिश नहीं होती !



इस अनमोल मनुष्य जीवन को सही मार्ग में लगा कर प्रकृति जानना ही हमारा ध्येय होना चाहिए ! यह मुस्किल जरूर है लेकिन नामुमकिन नहीं !



हम अगर वह करेंगे जो हम करते हुए आये हैं  तो हमें वही मिलेगा जो हमें हमेशा मिलता आया हैं !  परमात्मा को पाने के लिए हमें कुछ और करना चाहिए !
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