एक किसान की कहानी
ये कहानी हर मध्यम व छोटे वर्ग के किसान की है ....
कहते इन्सान सपना देखता है तो जरूर पूरा होता है
मगर किसानो के सपने कभी पूरे नही होते
बडे अरमान और कडी मेहनत से फसल तैयार करता है और जब तैयार हुई फसल को बेचने मंडी जाता है ,बडा खुश होते हुए जाता है
बच्चो से कहता है आज तुम्हारे लिये नये कपडे लाऊगा फल और मिठाई भी लाऊगा ,
पत्नी से कहता है तुम्हारी साडी भी कितनी पुरानी हो गई है फटने भी लगी है आज एक नई साडी लेता आऊगा
पत्नी - अरे नही जी ये तो अभी ठीक है आप तो अपने लिये जूते ही लेते आना कितने पुराने हो गये है और फट भी तो गये है.
जब किसान मंडी पहुचता है .
ये उसकी मजबुरी है वो अपने माल की कीमत खुद नही लगा पाता व्यापारी उसके माल की कीमत अपने हिसाब से करते है .
एक साबुन की टिकिया पर भी उसकी कीमत लिखी होती है.
एक माचिस की डिब्बी पर भी उसकी कीमत लिखी होती है
लेकिन किसान कडी मेहनत से तैयार अपनी फसल की कीमत खुद नही कर पाता .
खैर माल बिक जाता है लेकिन कीमत उसकी सोच अनुरूप नही मिल पाती माल तुलाई के बाद जब पैसे मिलते है...
वो सोचता है इसमे से दवाई वाले को देना है , खाद वाले को देना है, मजदूर को देना है ,
अरे हा बिजली का बिल भी तो जमा करना है......
सारा हिसाब लगाने के बाद कुछ बचता ही नही .
वो मायुस हो घर लौट आता है
बच्चे उसे बाहर ही इन्तजार करते हुये मिल जाते है
पिताजी ,पिताजी कहते हुये उससे लिपट जाते है और पूछते है हमारे नये कपडे नही लाये.
पिता - वो क्या है बेटा की बाजार मे अच्छे कपडे मिले ही नही दुकानदार कह रहा था इस बार दिवाली पर अच्छे कपडे आयेगे तब लेलेगे .
पत्नी समझ जाती है फसल कम भाव बिकी है वो बच्चो को समझा कर बाहर भेज देती है .
पति - अरे हा तुम्हारी साडी भी नही ला पाया .
पत्नी - कोई बात नही जी हम बाद मे लेलेगे लेकिन आप अपने जूते तो ले आते .
पति - अरे वो तो मै भूल ही गया.
पत्नी भी पति के साथ सालो से है पति का मायुस चेहरा और बात करने के तरीके से ही उसकी परेशानी समझ जाती है
लेकिन फिर भी पति को दिलासा देती है .
और अपनी नम आखो को साडी के पल्लु से छिपाती रसोई की ओर चली जाती है ..
फिर अगले दिन सुबह पूरा परिवार एक नयी उम्मीद ,एक नई आशा एक नये सपने के साथ नई फसल की तैयारी के लिये जुट जाता है....
ये कहानी हर छोटे और मध्यम किसान की जिन्दगी मे हर साल दोहराई जाती है और ना जाने कब तक दोहराई जाती रहेगी,