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कविता

                         मेरा सपना

मेरा भी एक सपना है, मैं स्वस्थ भारत बनाऊँगा ।
भले यहाँ मैं मिट जाऊँ, सुख, शांति, समृध्दि फैलाऊँगा ॥

सर पे कफन जो बाँधकर कर्तव्य पथ पर चलते हैं,
अंजाम की चिन्ता किये बिना, वो कर्म ही अपना करते हैं,
लड़ने को जो मुसीबतों से, तैयार हर-दम रहते हैं,
बाधा, रुकावट जब भी आये, कभी न उससे डरते हैं ।

बिल्कुल ऐसे हीं लोगों को अपने साथ मैं लाऊँगा ।
अपने देश में फैली जकड़न को, मैं जड़ से ही मिटाऊँगा ॥
मेरा भी एक सपना है, मैं स्वस्थ भारत बनाऊँगा ।
भले यहाँ मैं मिट जाऊँ, सुख, शांति, समृध्दि फैलाऊँगा ॥

भारत वासी सुधर जायेंगे, काम करेंगे सबसे बेहतर,
मदद के लिए दूसरों की ही, हरदम रहेंगे वो तत्पर,
हम भारत के उत्थान के लिए, कभी न चूकेंगे अवसर,
विश्व पटल पर भारत का, स्थान होगा सबसे ऊपर ।

भ्रष्‍टाचार को दूर भगा, सोने की चिड़ियाँ बनाऊँगा ।
आतंकवाद का नाम मिटा, शांति से जीना सिखाऊँगा ।
मेरा भी एक सपना है, मैं स्वस्थ भारत बनाऊँगा ।
भले यहाँ मैं मिट जाऊँ, सुख, शांति, समृध्दि फैलाऊँगा ॥

                              - सतीश कुमार सिन्‍हा           
                        हवा का झोका
एक हवा का झोका सामने से आया
उसकी आंखों में अंधेरा था छाया
वह आकर मेरे कानों में गुनगुनाया
आज मौसम बहुत खराब है
जिधर भी जाओ भ्रष्‍टाचार का सबाब है
सब यहां अपनी-अपनी रो रहे हैं,
अपनी गलती दुसरों के सर फोड़ रहे हैं

कौन कहता है मैं परेशान नहीं हूँ,
मैं तो सबकी करनी का फल भुगत रहा हूँ
सिगरेट, गाड़ियों के धूयें से मैं मर रहा हूँ
चिटियों की तरह वाहनों की बढ़ती आबादी,
हर तरह से मेरी करते रहते हैं बर्बादी
ये देखो पटाखों की आवाज से सना
जाना था कहां और मैं आ गया कहां

हर तरफ बुराइयों के पोल को मैं खोलते
कभी इधर कभी उधर रहता हूँ मैं डोलते
साथ रहूँ दोस्‍तों के, तो रहता हूँ बोलते
रहता हूँ घूमते जहाँ मेरी मर्जी हो
मौसम का डर नहीं, गर्मी या शर्दी हो
जीना हराम किया लोग हैं बेदर्दी

भगवान से उद्धार हेतु, करता हूँ अर्जी
                              - सतीश कुमार सिन्‍हा
कविता कविता Reviewed by team 🥎 on August 12, 2017 Rating: 5
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