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योद्धा

वीर प्रसूता मेवाड की धरती राजपूती प्रतिष्ठा, मर्यादा एवं गौरव का प्रतीक तथा सम्बल है। राजस्थान के दक्षिणी पूर्वी अंचल का यह राज्य अधिकांशतः अरावली की अभेद्य पर्वत श्रृंखला से परिवेष्टिता है। उपत्यकाओं के परकोटे सामरिक दृष्टिकोण के अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है। मेवाड अपनी समृद्धि, परम्परा, अधभूत शौर्य एवं अनूठी कलात्मक अनुदानों के कारण संसार के परिदृश्य में देदीप्यमान है। स्वाधिनता एवं भारतीय संस्कृति की अभिरक्षा के लिए इस वंश ने जो अनुपम त्याग और अपूर्व बलिदान दिये सदा स्मरण किये जाते रहेंगे। मेवाड की वीर प्रसूता धरती में रावल बप्पा, महाराणा सांगा, महाराण प्रताप जैसे सूरवीर, यशस्वी, कर्मठ, राष्ट्रभक्त व स्वतंत्रता प्रेमी विभूतियों ने जन्म लेकर न केवल मेवाड वरन संपूर्ण भारत को गौरान्वित किया है। स्वतन्त्रता की अखल जगाने वाले प्रताप आज भी जन-जन के हृदय में बसे हुये, सभी स्वाभिमानियों के प्रेरक बने हुए है।मेवाड का गुहिल वंश संसार के प्राचीनतम राज वंशों में माना जाता है।मान्यता है कि सिसोदिया क्षत्रिय भगवान राम के कनिष्ठ पुत्र लव के वंशज हैं। श्री गौरीशंकर ओझा की पुस्तक “मेवाड़ राज्य का इतिहास” एक ऐसी पुस्तक है जिसे मेवाड़ के सभी शासकों के नाम एवं क्रम के लिए सर्वाधिक प्रमाणिक माना जाता है.
मेवाड में गहलोत राजवंश – बप्पा ने सन 734 ई० में चित्रांगद गोरी परमार से चित्तौड की सत्ता छीन कर मेवाड में गहलौत वंश के शासक का सूत्रधार बनने का गौरव प्राप्त किया। इनका काल सन 734 ई० से 753 ई० तक था। इसके बाद के शासकों के नाम और समय काल निम्न था –
रावल बप्पा ( काल भोज ) – 734 ई० मेवाड राज्य के गहलौत शासन के सूत्रधार।
रावल खुमान – 753 ई०
मत्तट – 773 – 793 ई०
भर्तभट्त – 793 – 813 ई०
रावल सिंह – 813 – 828 ई०
खुमाण सिंह – 828 – 853 ई०
महायक – 853 – 878 ई०
खुमाण तृतीय – 878 – 903 ई०
भर्तभट्ट द्वितीय – 903 – 951 ई०
अल्लट – 951 – 971 ई०
नरवाहन – 971 – 973 ई०
शालिवाहन – 973 – 977 ई०
शक्ति कुमार – 977 – 993 ई०
अम्बा प्रसाद – 993 – 1007 ई०
शुची वरमा – 1007- 1021 ई०
नर वर्मा – 1021 – 1035 ई०
कीर्ति वर्मा – 1035 – 1051 ई०
योगराज – 1051 – 1068 ई०
वैरठ – 1068 – 1088 ई०
हंस पाल – 1088 – 1103 ई०
वैरी सिंह – 1103 – 1107 ई०
विजय सिंह – 1107 – 1127 ई०
अरि सिंह – 1127 – 1138 ई०
चौड सिंह – 1138 – 1148 ई०
विक्रम सिंह – 1148 – 1158 ई०
रण सिंह ( कर्ण सिंह ) – 1158 – 1168 ई०
क्षेम सिंह – 1168 – 1172 ई०
सामंत सिंह – 1172 – 1179 ई०
(क्षेम सिंह के दो पुत्र सामंत और कुमार सिंह। ज्येष्ठ पुत्र सामंत मेवाड की गद्दी पर सात वर्ष रहे क्योंकि जालौर के कीतू चौहान मेवाड पर अधिकार कर लिया। सामंत सिंह अहाड की पहाडियों पर चले गये। इन्होने बडौदे पर आक्रमण कर वहां का राज्य हस्तगत कर लिया। लेकिन इसी समय इनके भाई कुमार सिंह पुनः मेवाड पर अधिकार कर लिया। )
कुमार सिंह – 1179 – 1191 ई०
मंथन सिंह – 1191 – 1211 ई०
पद्म सिंह – 1211 – 1213 ई०
जैत्र सिंह – 1213 – 1261 ई०
तेज सिंह -1261 – 1273 ई०
समर सिंह – 1273 – 1301 ई०
(समर सिंह का एक पुत्र रतन सिंह मेवाड राज्य का उत्तराधिकारी हुआ और दूसरा पुत्र कुम्भकरण नेपाल चला गया। नेपाल के राज वंश के शासक कुम्भकरण के ही वंशज हैं। )

35. रतन सिंह ( 1301-1303 ई० ) – इनके कार्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौडगढ पर अधिकार कर लिया। प्रथम जौहर पदमिनी रानी ने सैकडों महिलाओं के साथ किया। गोरा – बादल का प्रतिरोध और युद्ध भी प्रसिद्ध रहा।
36. अजय सिंह ( 1303 – 1326 ई० ) –

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