आधूनिक समस्या
आज हमारी धरती माँ, आँचल में मूँह छूपाई ।
क्योंकि उसके बेटे ने दुर्गुण की नाच दिखाई ।।
शहर-शहर और गाँव-गाँव, वृक्षों पर सामत आई ।
सब लोगों ने वृक्षों की ही, करने लगे कटाई ।।
कुछ सज्जन अपने बल पर, वृक्ष बचाओ अभियान चलाई ।
किन्तु दुष्ट-जन मिलकर, उनकी ही हंसी उड़ाई ।।
जब पानी सर से ऊपर आया, बात समझ में आई ।
प्रदूषण को जल्दी से रोको, सबने रट लगाई ।।
प्रकृति ने सबको सिंचा, किसी को नहीं सताई ।
फिर भी अपने घर में, कहीं शरण ना पाई ।।
मोटर गाड़ी की बढ़ी आबादी, कार्बन गैस बढ़ाई ।
और पलास्टिक के थैले, मिट्टी में प्रदूषण लाई ।।
नदियों में प्रदूषण लाकर अपनी ही क्षती कराई ।
नदी अगर प्रदूषित हो गई, कैसे होगी सिंचाई ।।
लाउडस्पिकर तेज बजाकर, ध्वनी प्रदूषण करायें ।
तीव्र ध्वनी फैलाकर मानव, श्रवण शक्ति गंवायें ।।
अपनी बुद्धि का प्रयोग गलत कर, परमाणु बम बनाई ।
शांति संतुलन बिगड़ गया है, सबपर खतरा छाई ।।
जानबुझकर अपने ही, पैरों पर कुल्हाड़ी चलाई ।
इसे सहन करना ही होगा, अब तो मूँह की खाई ।।
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अभी भी ज्यादा कुछ नहीं बिगड़ा, संभव जाओ सब भाई ।
संकल्प करो, सब वृक्ष बचाओ, सबकी होगी भलाई ।।
अगर समय के रहते ही में, संभलोगे नहीं भाई ।
प्रकृति संतुलन बिगड़ जाएगा, मच जाएगी त्राहि-त्राहि ।।
कवि :- सतीश कुमार सिन्हा
आधूनिक समस्या
Reviewed by team 🥎
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August 12, 2017
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