एक धार्मिक एवं सांस्कृतिक अनुष्ठान जिसमें पुत्र के जन्म के दस दिन बाद शुभ मूहुर्त में निर्धारित तिथि को महिलाएं जच्चा को पारंपरिक वेशभूषा में गाजे - बाजे के साथ कुएँ पर ले जाती हैं और कुएँ की तरह परिवार भी भरा पूरा रहने की कामना के साथ विधिवत रूप से कुएँ का पूजन करती है
२. ढूंढ :
बच्चे के जन्म की प्रथम होली पर किया जाने वाला संस्कार |
३.जामणा :
पुत्र जन्म पर नाई बालक के पगल्ये लेकर उसके ननिहाल जाता है |
तब उसके नाना, मामा उपहार स्वरूप वस्त्राभूषण मिठाई आदि लाते हैं, जिसे जामणा कहा जाता है
४. नांगल :
नवनिर्माण गृह के उद्घाटन की रस्म नांगल कहलाती है |
५. हरवन गायन :
वागड़ क्षेत्र (डूंगरपुर - बाँसवाड़ा ) में मकर संक्रांति पर गायी जाने वाली श्रवण कुमार की गाथा |
६. सिंथारौ :
श्रावण कृष्णा तृतीया पर्व तथा इस दिन कन्या या वधू के लिए भेजा जाने वाला सम्मान |
७. जातकर्म संस्कार :
बच्चे के जन्म पर होने वाले इस संस्कार नवजात बच्चे को मक्खन चटाना उसके दाहिने कान में तीन बार 'वाक्' शब्द कहना सुनहली चम्मच से उसे दही मधु व घृत चटाना आदि क्रियाएँ शामिल हैं |
८. ओडावणी :
विशेष अवसरों पर कन्या के पिता द्वारा असके पति के परिवार को दिया जाने वाला वस्त्राभूषण |
९. सूतक :
संतान के जन्म पर गृह परिवार में होने वाला अशौच |
१०. सोने की निसरनी चढाना :
इस रिवाज में अपने वंश की चौथी पीढ़ी के पुत्र प्राप्ति के पश्चात प्रपितामह अपने प्रपौत्र को गोदी में बिठाकर अपनै पैर का अंगूठा सोने की निसरनी को छुआता है रस्म पूरी होने पर बहन बेटियों को सोना भेंट किया जाता है|