विवाह के अवसर पर कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को दी जाने वाली धन, सम्पत्ति और सामान इत्यादि को ‘दहेज’ कहा जाता है। वर पक्ष विवाह तय करने से पूर्व ही कन्या पक्ष से दहेज में दी जाने वाली राशि एवं सामान के विषय में मांग करता है और मिलने का आश्वासन प्राप्त होने पर ही विवाह पक्का होता है। इस प्रकार लड़कियों को सुखी रखने की भावना से लड़के वालों को खुश करने के लिये लड़की के माता पिता द्वारा दहेज दिया जाता है।
Essay on Dowry evil in Hindiदहेज लेने और देने की प्रथा कोई नयी नहीं है। प्राचीन काल से ही इस प्रथा का चलन है। हमारे यहाँ भारत में कन्यादान को एक पवित्र धार्मिक कार्य माना जाता है। प्राचीन काल में आर्शीवाद स्वरूप माता पिता अपनी सामर्थ्य के अनुसार अपनी बेटी को वस्त्र, गहने एवं उसकी नयी घर गृहस्थी का कुछ सामान भेंट करते थे। इसका मूल उदे्दश्य यही था कि वर वधु नयी नयी गृहस्थी सुचारू रूप से चला सकें। लड़की का मान सम्मान सुसराल में उसके द्वारा किये जाने वाले व्यवहार एवं संस्कारों पर निर्भर था, लड़की द्वारा लाये गये दहेज पर नहीं। वर्तमान युग में दहेज प्रथा एक सामाजिक प्रथा के रूप में अभिशाप बन गयी है। यह दिन प्रतिदिन विकराल रूप धारण करती जा रही है और पूरे समाज को इसकी काली विशैली जीभ लीलती जा रही है।
इस प्रथा के कारण ही समाज में बाल विवाह, अनमेल विवाह तथा विवाह विच्छेद जैसी प्रथायें अस्तित्व में आ गयी हैं। इसके कारण कितनी समस्यायें बढ़ रही हैं, इसका अनुमान लगाना कठिन है। सबसे पहले तो यह कि जन्म से पूर्व ही माँ के गर्भ में जांच के बाद लड़कियों को मारने के कारण लड़के लड़कियों की संख्या का अनुपात बिगड़ गया है। दूसरा, दहेज देने की होड़ में लड़की के माता पिता कर्जदार होकर अपनी परेशानियां बढ़ा रहे हैं। वहीं लड़के वाले लालच में आकर अधिक दहेज के लिये नवविवाहता को तंग करते हैं अथवा जलाकर मारने जैसा घृणित कार्य भी करते हैं। कई बार लड़की यह सब ताने और अत्याचार नहीं सह पाती तो आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाती है या तलाक के लिये मजबूर हो जाती हैं
Essay on Dowry evil in Hindiदहेज लेने और देने की प्रथा कोई नयी नहीं है। प्राचीन काल से ही इस प्रथा का चलन है। हमारे यहाँ भारत में कन्यादान को एक पवित्र धार्मिक कार्य माना जाता है। प्राचीन काल में आर्शीवाद स्वरूप माता पिता अपनी सामर्थ्य के अनुसार अपनी बेटी को वस्त्र, गहने एवं उसकी नयी घर गृहस्थी का कुछ सामान भेंट करते थे। इसका मूल उदे्दश्य यही था कि वर वधु नयी नयी गृहस्थी सुचारू रूप से चला सकें। लड़की का मान सम्मान सुसराल में उसके द्वारा किये जाने वाले व्यवहार एवं संस्कारों पर निर्भर था, लड़की द्वारा लाये गये दहेज पर नहीं। वर्तमान युग में दहेज प्रथा एक सामाजिक प्रथा के रूप में अभिशाप बन गयी है। यह दिन प्रतिदिन विकराल रूप धारण करती जा रही है और पूरे समाज को इसकी काली विशैली जीभ लीलती जा रही है।
इस प्रथा के कारण ही समाज में बाल विवाह, अनमेल विवाह तथा विवाह विच्छेद जैसी प्रथायें अस्तित्व में आ गयी हैं। इसके कारण कितनी समस्यायें बढ़ रही हैं, इसका अनुमान लगाना कठिन है। सबसे पहले तो यह कि जन्म से पूर्व ही माँ के गर्भ में जांच के बाद लड़कियों को मारने के कारण लड़के लड़कियों की संख्या का अनुपात बिगड़ गया है। दूसरा, दहेज देने की होड़ में लड़की के माता पिता कर्जदार होकर अपनी परेशानियां बढ़ा रहे हैं। वहीं लड़के वाले लालच में आकर अधिक दहेज के लिये नवविवाहता को तंग करते हैं अथवा जलाकर मारने जैसा घृणित कार्य भी करते हैं। कई बार लड़की यह सब ताने और अत्याचार नहीं सह पाती तो आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाती है या तलाक के लिये मजबूर हो जाती हैं