Bhilwara

 जिला परिचय


भीलवाड़ा जिले का नाम भीलवाड़ा कैसे रखा गया यह रिकॉर्ड मे नहीं है पुरानी मान्यता यह है की पुराने दिनों में ज्यादातर भीलो द्वारा बसाव होने से इसे भीलवाड़ा के नाम से जाना जाने लगा अन्ततः इन भीलों को बसने वाले किसानो के पूर्वजों द्वारा पहाड़ी इलाकों और कम महत्व के आंतरिक स्थानों की ओर खदेड़ दिया गया। विडंबना यह है कि अब इस क्षेत्र में बहुत कम भील रहते हैं। एक अन्य संस्करण में कहा गया है कि वर्तमान भीलवाड़ा शहर में एक टकसाल था जहां श्भिलाडीश् के नाम से जाने जाने वाले सिक्के ढाले जाते थे और इसी संप्रदाय से जिले का नाम लिया गया था। इन वर्षों में यह राजस्थान के टेक्सटाइल सिटी के रूप में उभरा है। आजकल भीलवाड़ा देश में टेक्सटाइल सिटी के रूप में जाना जाता है।

स्थान और क्षेत्र

निर्देशांक

25.35°N 74.63°E

क्षेत्रफल

10508.85 किमी स्कवायर

समुद्रतल से ऊंचाई

421 मीटर  (1381 फीट )

                                            क्षेत्र का वर्गीकरण

वन क्षेत्र

75752

कृषि भूमि

642589 हैक्टर

कुल सिंचित

247289 हैक्टर

                                            अवस्थिति

उत्तर

अजमेर

दक्षिण

चित्तोडगढ और उदयपुर और स्टेट बॉर्डर मध्यप्रदेश

पूर्व

बूंदी

पश्चिम

राजसमन्द

प्रमुख नदिया

बनास, बेडच ,कोठारी,खारी, मानसी, मेंनाली, चन्द्रभागा और नागदी

पाड़ोसी राज्य : यह जिला मध्यप्रदेश के साथ अंतरराज्यीय सीमा बनाता है, जो सबसे कम अंतरराज्यीय सीमा बनाने वाला जिला है 


त्रिवेणी संगम : बनास, बेड़च, मेनाल का त्रिवेणी संगम बीगोद में स्थित है 

बागोर सभ्यता : कोठारी नदी के किनारे स्थित महाशक्तियों के टिले में उत्खनन वर्ष 1967 

वी. एन मिश्र के निर्देशन में 

(यहां आदिम संस्कृति का संग्रहालय भी है) 

* ऊपरमाल पठार, बिजौलिया से भैंसरोड़गढ चित्तौड़गढ़ तक है 

* बिजौलिया का प्राचीन नाम :  विन्ध्यावली था 

* मेजा बांध (मण्डालगढ) 

बिजौलिया शिलालेख, 1170ई. श्रावक लोलाक ने पाश्र्वनाथ जैन मंदिर में उत्कीर्ण करवाया था, रचयिता गुण भद्र थे 


हुरड़ा सम्मेलन, मराठो के विरुद्ध सवाई जयसिंह ने करवाया था १६ /जुलाई 1734 में 


फड़ कला


फड़ कला भारत की एक प्रमुख लोक कला है।  कपड़े पर फड़ बनाया जाता है जिसमें लोक देवी.देवता के जीवन का चित्रण किया जाता है। देवनारायण जी और पाबूजी का फड़ बहुत लोकप्रिय है।  देवनारायण जी का फड़ 20.25 हाथ लंबा है और पाबूजी का फड़ 15.20 हाथ लंबा है।  इन फड़ की कहानी को भोपा कविता के रूप में पढ़ते हैं।  इसमें लोककथाओं के पात्रों का जीवन, उनकी समस्याएं, प्रेम, क्रोध, संघर्ष,त्याग, वीरता प्रस्तुत की जाती है।  फड़ कला प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती है।  इसके लिए कपड़ा भी कलाकार द्वारा हाथ से बनाया जाता है।  फड़ में मुख्य रूप से नारंगी, पीले, हरे, भूरे, लाल, नीले और काले रंगों का प्रयोग किया जाता है। फड़ के पात्र एक तरफा/चश्मा वाले चेहरे के हैं जो फड़ को और भी आकर्षक बनाते हैं।  फड़ का इतिहास लगभग 600 वर्ष पुराना है। भीलवाड़ा (शाहपुरा) का जोशी परिवार फड़ चित्रकला के लिए प्रसिद्ध है।  भीलवाड़ा से पद्मश्री से सम्मानित स्वर्गीय श्री लालजी जोशी तथा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित उनके पुत्र श्री कल्याण जोशी एवं श्री गोपाल जोशी इस कला को निरंतर ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं।

* देवनारायण जी का मंदिर, आसीन्द में स्थित है 

*बिजौलिया - जैन पाश्र्वनाथ तीर्थ क्षेत्र 2700 वर्ष पहले का माना जाता है 

व्यक्तित्व

मुकुट बिहारी भार्गव : हरिभाऊ उपाध्याय ने  राजस्थान का सी. आर दास कहा है 

जानकी लाला भांड को राजस्थान का मंकी मैन कहते है