सुनलो चलने वाले इतना, पथ चलते कोई खो मत जाना।
इस अन्दर की फटी बिवाई, कालीनों पर भुला न देना।।
क्या रोता ही सदा रहूँगा, देख खून अपना ही।
क्या मेरे जीवन का सपना, बना रहेगा सपना ही ।।
तरस रहे नयनों के बादल,देखो वर्षा किए बिना।
सुनलो चलने वाले इतना, पथ चलते कोई खो मत जाना। १
स्वाति बिना झोली भरती क्या, अन्तर के इस याचक की।
कितना तड़फ रहा है सागर, प्यास बुझाने चातक की।।२
कब तक चाँद समझ कर खाए, अँगारों को चकवा चुन कब तक मोती के धोखे में, हँस चुगें कंकर रे सुन।।
मेेरे दर्द की दवा यही बस, तेरी तड़फन दे देना।
सुनलो चलने वालो इतना, पथ चलते कोई खो मत जाना।।३
कितना दर्द लिए जलता हूँ, युग की झोली भरने को।
क्या तुम भी आए हो बंधु, उसी आग में जलने को।।
आये हो तो मुझे जलाकर, चले न जाना जले बिना।
सुनलो चलने वालो इतना, पथ चलते कोई खो मत जाना।।४।।
श्री उम्मेदसिंह खींदासर
सुनलो चलने वालो 'कविता'
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April 01, 2020
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